आज के दौर में हिन्दी: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और भाषा किसी भी मनुष्य के लिए संचार का एक सबसे सरल माध्यम है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी कहा था की यदि भारत में सबको एक सूत्र में पिरोना है तो हिंदी को ही संचार की भाषा के रूप में चुनना पड़ेगा उनका कथन सही था और उन्होंने हिंदी के द्वारा ही सबको एक सूत्र में पिरो दिया था। लेकिन वही हिंदी आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है।
आज के दौर में हिन्दी
आज के दौर में
आज के दौर में हम सबने लगभग उस हिंदी को त्याग दिया है और हिंदी को बोलने में हमें हिचक सी महसूस होने लगती है इसी हिचक ने आज के दौर में हिंदी को अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ रहा है। अपनी इस आधुनिकता में हम यह भूल रहे हैं की पानी के बहाव और भाषा के प्रवाह को रोका नहीं जा सकता जिस प्रकार पानी अपना रास्ता खुद बना लेता है ठीक उसी प्रकार भाषा भी अपने आपको स्थापित कर ही लेती है। आज के समय में राष्ट्रीय स्तर पर भले ही हिंदी को वह सम्मान न मिले मगर वह अपने आप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में पूरी तरह से सफल हुई है। आज जहाँ हम भारत में अँगरेजी को बोलने में गर्व महसूस करते हैं, वहीं दूसरी ओर विदेशी हमारी हिंदी को सीखने के लिए हमारे भारत की ओर अग्रसर होते हैं। कोई भी भाषा छोटी या बड़ी नहीं होती केवल उसको देखने और समझने का नज़रिया उसे छोटा या बड़ा बना देता है।
भाषा का महत्त्व
कई भाषाओं के मिलने से किसी भाषा का निर्माण होता है और एक दीवार में एक ईंट का जितना महत्व होता है। उसी प्रकार छोटी सी भाषा का भी उतना ही महत्व होता है और हिंदी तो भारत की एक सम्मानित भाषा रही है उसे हम कैसे नकार सकते हैं। यह ठीक है की भारत में आज अंगरेजी का बोलबाला है, लेकिन हमारी मूल भाषा आज भी हिंदी ही है। यही कारण है की हिंदी को नकारने से हम न तो पूरी तरह से अंगरेजी को ही सीख पाए हैं और न ही हिंदी को समझ पाए हैं। ऐसी स्तिथि में हम दो भाषाओं के बीच में फँस कर रह गए हैं। अपने आप को हमें इस स्तिथि से निकालने के लिए हमें दोनों भाषाओं को बराबर सम्मान देना होगा। तभी हम भाषा के साथ न्याय कर पाएंगे और उसका सम्मान कर पायेंगे।
निर्विकल्प मुदगल
एम ए बी एड
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